Move आह से आहा तक !
परेशानियों से लेकर प्रशांति तक
मेरी सफर है आह से आहा तक
जब असार संसार को समजा मैंने
शिकायतों से पहुचा साहजिक स्वीकार तक |
संसारी लोगो के छलकपट
आत्मा के आगे माया का पट
अज्ञान का अंधेरा था घट घट |
पर अब किससे ज़गडा किससे बैर ?
मैं ही मैं हूं धरती से आकाश तक
सभी मेरे ही टू है आत्मबंधू
friend से लेकर foe तक |
अस्तित्त्व का उत्सव है जिन्दगी
अब प्रतिक्षण होती है बंदगी
प्रभु को पाने की प्यास सी जगी |
कहां कहां नही ढूंढा तुजको
गुरुद्वारा से लेकर गिरजाघर तक
ख़ुद के भीतर जब झाँका तो
तामस हटा के जा पंहुचा तुरीय तक |
देखा नये नजरिये से यह जीवन
अंत:शत्रुओं से मुक्त है अब मन
और तोड़ दीये माया के सब बन्धन |
अपने आप को पहेचान लिया
गया अहम् से शिवोहम तक
मन के अन्दर जलाया ज्ञान दीपक
समज लिया द्यैत से लेकर अद्यैत तक |
devil भी मैं , devine भी हूँ मैं ही
जहन्नम एयर जन्नत दोनों हाउ यही
बन गया जब मैं देही से विदेही |
विश्व है 'नेति नेति' की एक विराट मूर्ति
सच्चिदानन्द है दूर से लेकर पास तक
मैं था चंचंल सीमित एक लहर
अब हूँ लहेराते निसिम सागर तक |
परेशानियों से लेकर प्रशांति तक
मेरी सफर है आह से आहा तक |
मनीष पंचमतिया
4 comments:
Hi Manish,
This is the first time i'm visiting your blog. I was not knowing before visiting this site that you also writes poems. Good collection.
Keep posting such kind of Gujarati reading.
Regards
Parag
very nice..aah se aha tak.
keep it up ,manish.i am happy to see progress of my favourite student.all the best..keep it up
http://www.youtube.com/watch?v=Wvaxm6W218o
Look I am presenting this poem at Mr. Goenkaji's home, Bangalore at small gathering of Hindi poets
http://www.youtube.com/watch?v=MibWES8v7x0
One more video. I am presenting this poem.
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