अब...
अब ना मुक्ति ना बन्धन |
ना स्मित ना रुदन |
आनंद से युक्त हर धड़कन |
एक नूतन स्पंदन !
अब ना आशा ना निराशा !
ना चाहना ना कामना !
ना अपेक्षा ना आकांक्षा |
विश्रांति और शांति |
अब तो बस हमेशा " हाश ! " |
परम संतृप्ति और ज्योति !
नई द्रष्टि नई सृष्टि !
सर्जनहार की एक अनुपम कृति !
जो है आकाश के उस पार |
वो है अब मेरे पास !
महेसूस करे मेरी हर सांस !
'मनीष' यह पल है कुछ ख़ास !
1 comment:
http://www.youtube.com/watch?v=MibWES8v7x0
Manish presenting this poem.
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